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तीर्थ बन गया है जयप्रभा ग्राम

प्रस्‍थान
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नानाजी देशमुख का स्‍मरण आते ही मन श्रद्धा से भर उठता है। उनकी पुण्‍य स्‍मृति में आयोजित भण्‍डारा में शामिल होने का आमंत्रण मिला तो लगा कि जैसे किसी तीर्थ से बुलावा आ गया हो। यह आयोजन भी उस स्‍थान पर था जिसे देखने की इच्‍छा वर्षों से थी। स्‍थानान्‍तरित होकर फैजाबाद आने के बाद तो कई बार कार्यक्रम भी बना पर फलीभूत न हो सका। यह स्‍थान है गोण्‍डा जिले में स्थित जयप्रभा ग्राम यानी नानाजी की वह प्रयोगस्‍थली जो गांवों की खुशहाली का सजीव माडल बनकर एक भरोसे का प्रतीक बन गई है। दीन दयाल उपाध्‍याय शोध संस्‍थान के ग्रामोदय प्रकल्‍प द्वारा संचालित यह ग्राम वास्‍तव में तीर्थ बन गया है। भण्‍डारा के निमित्‍त जयप्रभा ग्राम की यह यात्रा मानस पटल पर नानाजी की ऐसी तस्‍वीर छोड गई जो न सिर्फ प्रेरक बल्कि अविस्‍मरणीय भी रही।

11 अक्‍टूबर 1916 को महाराष्‍ट्र में जन्‍म लेकर 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में अन्तिम सांस लेने तक की नानाजी की जीवन-यात्रा में गोण्‍डा का जयप्रभा ग्राम एक अहम पड़ाव है। नानाजी से मेरी पहली मुलाकात गोरखपुर के सुप्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर में हुई थी। वह महन्‍त दिग्विजयनाथ पुण्‍य स्‍मृति समारोह में शामिल होने आये थे। अपने अखबार के लिए उनसे बातचीत का आग्रह पहली बार में स्‍वीकार न हो सका था लेकिन बाद में गोरक्षपीठाधीश्‍वर महन्‍त अवेद्यनाथ के हस्‍तक्षेप पर वह गैर राजनीतिक चर्चा के लिए राजी हो गये थे। नानाजी से दुबारा भेंट न हो सकी। एक बार चित्रकूट गया तो उनके प्रकल्‍पों की कल्‍पनातीत गतिविधियां देखने के बाद मन ही मन उन्‍हें प्रणाम करके वापस आ गया था। इस बार जयप्रभा ग्राम जाने के बाद उनकी यादें ताजा हो उठीं। महत्‍वपूर्ण बात यह है कि नानाजी ने जिस आदर्श गांव की परिकल्‍पना की उसका नाम उन्‍होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनकी धर्मपत्‍नी श्रीमती प्रभादेवी के नाम पर रखा। जयप्रभा ग्राम के मुख्‍य प्रवेशद्वार से अंदर प्रवेश करते ही बांये तरफ इन दोनों विभूतियों की प्रतिमाएं दिखाई पडती हैं। यह स्‍वयं नानाजी के विराट व्‍यक्तिव के एक पहलू को उजागर करता है। परिसर में नानाजी का एक वाक्‍य सर्वाधिक प्रेरक है-  ” हम अपने लिए नहीं, अपनों के  लिए हैं। अपने वे हैं जो पीडित और उपेक्षित हैं।”  सच कहें तो इस बोध वाक्‍य ने ही शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, स्‍वालम्‍बन व सदाचार के सहारे आदर्श ग्राम की कल्‍पना को साकार करने की नानाजी की कोशिशों को परवान चढाया है। लगभग 55 एकड के इस परिसर में कृषि, शिक्षा और अध्‍यात्‍म का अदभुत समन्‍वय दिखता है। शिक्षा के लिए जहां चिन्‍मय ग्रामोदय विद्यामंदिर इंटर कालेज स्‍थापित है वहीं रामनाथ आरोग्‍यधाम और मां सत्‍याबाई मातृ शिशु कल्‍याण केन्‍द्र अपनी पूरी क्षमता से स्‍वास्‍थ्‍य सेवा के  कार्य में जुटा हुआ है। जयप्रभा ग्राम में नानाजी की कुटिया समाजसेवा को ही साधना का पथ मानने वाले कर्मयोगियों के लिए प्रेरणा पुंज है। यह कुटिया एक आकर्षक तालाब के किनारे है। तालाब के पश्चिमी ओर आठ एकड में फैली वह बगिया है जिसमें शायद ही कोई ऐसा वृक्ष न हो जिसे लोग जानते पहचानते हैं। शोध संस्‍थान के सचिव रामकृष्‍ण तिवारी कहते हैं कि यह परिसर पर्यटन की दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण हो गया है। रोज बडी संख्‍या में लोग यहां न सिर्फ धार्मिक उद़देश्‍यों से बल्कि गांवों के विकास का सूत्र खोजने आते हैं। कृषि के जरिए आत्‍मनिर्भरता, शिक्षा के जरिए व्‍यक्त्तिव विकास और साधना के जरिए आध्‍यात्‍मिक विकास के लिए यहां अपेक्षित वातावरण उपलब्‍ध है। परिसर में स्थित चारोंधाम भक्तिधाम मंदिर आस्‍था का केन्‍द्र बन गया है।

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