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अयोध्या : मणिपर्वत पर भगवान श्रीराम को जानकी जी संग झूला झुलाने की सदियों से चली आ रही परंपरा श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को आज भी जीवंत हो उठती है। झूले पर विराजमान स्वरूपों में भगवान श्रीराम व जानकी जी के अप्रतिम सौंदर्य का आभास कर संत महात्माओं के हृदय में उठती प्रेम और आनंद की हिलोरें यहां ईश्वर के प्रत्यक्ष उपस्थित होने का भाव उत्पन्न कर देती हैं। कहा जाता है कि भगवान इस दिन सूक्ष्म रूप में स्वयं प्रगट होकर अपने भक्तों की सुखानुभूति के लिए उनके इशारे पर यहां झूला झूलते हैं। अयोध्या में इसे सिद्ध क्षेत्र माना जाता है क्योंकि यहां कम प्रयास में ही विशिष्ट सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।
भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में मणिपर्वत वह स्थान है जहां विभिन्न संत-महात्माओं के साथ ही आम भक्तों को भी वटवृक्ष की डाल में झूला डालकर भगवान को अपने हाथों से हिंडोले पर झूला झुलाने का अवसर प्राप्त होता है। कहते हैं कि सौभाग्य से ही इस झूलनोत्सव में शामिल होने का अवसर मिल पाता है। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया (इस बार दो अगस्त) से मणिपर्वत पर यह झूलनोत्सव शुरू होगा, जिसमें कनक भवन समेत रामनगरी के सैकड़ों प्रमुख मंदिरों से विग्रहों और स्वरूपों को धूमधाम से मणिपर्वत लाकर झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वाह किया जाएगा। मणिपर्वत पर भगवान श्रीराम व जानकी जी के इन्हीं विविध और दिव्य स्वरूपों के दर्शन की लालसा आसपास के जिलों के लाखों श्रद्धालुओं को अयोध्या खींच लाती है। इस झूलनोत्सव में शामिल होने के लिए विदेशों से भी श्रद्धालु अयोध्या पहुंचते हैं और रामभक्ति की माधुर्य भाव की इस परंपरा में डूबकर खुद को धन्य महसूस करते हैं।
धार्मिक और एतिहासिक दृष्टिकोण से भी मणिपर्वत का महात्म्य कुछ कम नहीं है। ऐसी मान्यता है कि श्रीराम-जानकी विवाह के समय राजा जनक द्वारा भेंट की गई मणियां यहां रखी गई थीं और पर्वत के समान मणियों का ढेर लगने की वजह से यह स्थान मणिपर्वत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मौजूदा समय में मणिपर्वत अपनी इन्हीं विशिष्टताओं की वजह से भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है। हालांकि यही प्रमुख वजह भी है जिसके कारण यह ऐतिहासिक महत्व का स्थान दुर्दशा का शिकार हो रहा है। इसके अलावा बगल में ही रेलवे की कोयला साइडिंग होने की वजह से भी यह स्थान प्रदूषित हो चला है। मणिपर्वत का सौंदर्य झूलनोत्सव के समय ही अपने उत्कर्ष पर होता है और बाकी दिनों में प्रशासनिक इंतजामात न रहने से यह स्थान उपेक्षित ही रहता है। धार्मिक और आध्यात्मिक धरोहर होने की वजह से इस स्थान के सौंदर्य की रक्षा के लिए जब संत महंत सक्रिय भी होते हैं तो पुरातत्व विभाग के कायदे-कानून उनके हाथ बांध देते हैं।
अयोध्या के दर्शन भवन के महंत विश्वनाथ दास शास्त्री कहते हैं मणिपर्वत अयोध्या का रमणीय वन क्षेत्र था, जहां पहले तिलोदकी गंगा भी बहती थीं। सावन के महीने में प्रभु श्रीराम यहां जानकी जी संग झूला झूलते थे। इस कारण यहां भगवान को झूला झुलाकर प्रसन्न करने की परंपरा प्रचलित हुई।
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