Menu
blogid : 495 postid : 93

यहां भी साध्वियों को है चेरी ब्लेयर का इंतजार

प्रस्‍थान
प्रस्‍थान
  • 17 Posts
  • 116 Comments

12faz01

अयोध्या : कहा जाता है कि भूखे पेट भजन नहीं हो सकता लेकिन इनके लिए तो पेट की भूख मिटाने के लिए भजन ही एकमात्र सहारा है। एकाकीपन की व्याकुलता से जूझतीं इन साध्वियों को भी किसी चेरी ब्लेयर का इंतजार है, ताकि इनका दुख-दर्द भी समाज के सामने आ सके। जीवन की सांध्य बेला तीर्थनगरी में बिताने का सौभाग्य पाकर भी कतिपय विडंबनाएं इनके पांव में कांटे की तरह चुभती हैं।

कहना न होगा कि पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोली ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर की वृंदावन यात्रा के बहाने वहां आश्रमों में रहने वाली विधवा व निराश्रित साध्वियों के जीवन-स्तर में सुधार को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। वृंदावन की तरह रामनगरी के आश्रमों में भी बड़ी संख्या में ऐसी साध्वियां रहती हैं, जो प्रमुख मंदिरों में भजन-कीर्तन करने पर भोजन के साथ दक्षिणा के रूप में मिलने वाली मामूली धनराशि के सहारे अपना जीवन-यापन कर रही हैं। बात चाहे सीताराम आरोग्य निकेतन में रहने वाली द्रौपदी दासी, सोनिया दासी व शुभ्रा दासी की हो या जानकी महल में प्रतिदिन कीर्तन करने वाली साध्वियों के समूह में शामिल मंजू दासी, कौशल्या दासी व रामसखी की, सबके जीवन में चुनौतियां एक सी हैं। रहने को स्थायी ठौर और दो जून का भोजन रोज की समस्या है। संसार की निस्सारता का बोध हो जाय तो भी न्यूनतम आवश्यकता के तौर पर भोजन व आवास की जरूरत कैसे नकारी जा सकती है?
जानकी महल ट्रस्ट में संकीर्तन करने पर एक समय का भोजन व छह रुपये दक्षिणा मिलती है। यहां प्रतिदिन दो पालियों में संकीर्तन होता है। कुछ मंदिरों में तो एक समय भोजन के साथ महज दो रुपये दक्षिणा मिलती है। जीवन-यापन के लिए भजन-कीर्तन पर आश्रित ज्यादातर साध्वियां उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। कुछ के लिए तो उनका अपना शरीर ही बोझ बन गया है, मगर ईश्वरीय सत्ता में अटल विश्वास उनमें संघर्ष की जीजिविषा बनाए हुए है। जानकी महल में कीर्तन के बाद भोजन के इंतजार में बैठीं मंजूला दासी कहती हैं-‘सबकै भगवाने सहारा हैं, उनहीं के कृपा से जिंदगी चलती बा, अगवों ऐसै चली।Ó वह बताती हैं कि जब परिवार का सहारा छूट गया तो भगवान ने अपने दरबार में बुला लिया। अब जैसे-तैसे उन्हीं के दरबार में जीवन बिता देना है।
फूलमती को आंखों से धुंधला दिखता है, लेकिन वह अपनी संगी साध्वियों के साथ रोज किसी न किसी मंदिर में कीर्तन करने पहुंच जाती हैं। कीर्तन में अक्सर इन्हें ‘सीताराम-सीतारामÓ कहना होता है। फूलमती को इस बात की खुशी है कि उनकी जीविका कीर्तन के सहारे चल रही है लेकिन थोड़ा दुख इस बात का जरूर है कि जीवन की अंतिम सांस तक के लिए भी उनके पास कोई स्थायी ठौर नहीं है। रामनगरी में महिला साधुओं को आश्रय देने वाले ‘माईबाड़ाÓ की महंत जानकी दासी तो भगवान से बस यही प्रार्थना ही करती हैं कि उन्हें सभी साध्वियों को आश्रय देने की सामथ्र्य दें। वह किसी कवि की ये पंक्तियां बार-बार उद्धृत करती हैं-‘मन रे! हरि बिनु कौन सहाई।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh