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दुधवा में उठाएं छुट्टियों का लुत्फ

प्रस्‍थान
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लखीमपुर : गर्मी के मौसम में शीतल-मंद हवाओं के बीच किसी जंगल के सुरम्य वातावरण में पूरे रोमांच के साथ सैर का आनंद भला किसे नहीं सुहाता। भारत-नेपाल सीमा पर इसी जिले के 680 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला दुधवा नेशनल पार्क आपको ऐसी ही स्वप्निल अनुभूति कराने को तैयार है। शर्त यह है कि आपको 15 जून से पहले यहां आना होगा। इसके बाद पार्क के दरवाजे बंद हो जाएंगे। यहां आपको बाघ के अलावा तेंदुआ, बारहसिंहा, हिरन, भालू, गैंडा व हाथी समेत सैकड़ों दुर्लभ वन्य जीवों के दर्शन होंगे। हाथी पर तो आप सवारी भी कर सकते हैं।
वर्तमान में दुधवा टाइगर रिजर्व के तौर पर दुनिया भर में मशहूर यह पार्क वर्ष 1958 में वन्यजीव सेंचुरी के तौर पर स्थापित किया गया था, जिसमें मुख्यत: बारहसिंहा (स्वैंप डीयर) आवासित थे। इसके घने जंगल साल के वृक्षों से आच्छादित हैं और उनका अस्तित्व सैकड़ों वर्ष पुराना है। बाघों से अपने प्रेम के लिए मशहूर बिली अर्जन सिंह के प्रयासों से वर्ष 1977 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा प्राप्त हो गया। वर्ष 1987-88 में भीरा स्थित किशनपुर वन्यजीव सेंचुरी को मिलाकर इसे दुधवा टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। इस तरह दुधवा टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल किशनपुर सेंचुरी के 203 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को मिलाकर 883 वर्ग किलोमीटर हो गया। मौजूदा समय में दुधवा टाइगर रिजर्व में किशनपुर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के अलावा कतर्नियाघाट वाइल्ड लाइफ सेंचुरी भी समाहित है।
दुधवा की सैर के लिए मौसम के हिसाब से वैसे तो फरवरी से अप्रैल के बीच का समय आदर्श माना जाता है लेकिन गर्मी की छुट्टियों के कारण 15 मई के आसपास पर्यटकों की संख्या बढऩे लगती है। यहां पार्क की सैर कराने के लिए कुल 15 गाइड हैं, जिसमें से एक वन विभाग का कर्मचारी है तो 14 निजी सेवादाता के तौर पर पंजीकृत हैं। इन गाइड्स के साथ पर्यटक निजी वाहनों से भी सैर पर निकल सकते हैं। जिनके पास निजी वाहन नहीं हैं, उन्हें यहां किराए पर वाहन मिल जाते हैं। वाहनों से जंगल के अंदर 35 से 40 किलोमीटर की सैर आसानी से हो जाती है। शाम तक वापस लौटकर दुधवा आने के अलावा जंगल के अंदर सोनारीपुर, सठियाना व बनकटी में बने विश्राम गृहों में रात गुजारने के विकल्प का अपना अलग ही आकर्षण है। इसके अलावा प्रशिक्षित हाथियों पर बैठकर सैर करने का मजा तो सबसे खास है। इस कार्य के लिए पार्क प्रशासन के पास वर्तमान में कुल 13 हाथी हैं। जंगल की सैर करते हुए बारहसिंहा व गैंडे तो आसानी से दिख जाते हैं, पर अन्य वन्यजीवों को देखने के लिए थोड़ी ज्यादा कसरत करनी पड़ती है। नेपाल के पहाड़ों से निकली सुहेली नदी दुधवा की जीवन धारा कही जाती है। इस समय यह नदी कुछ स्थानों पर सूख गई है लेकिन कहीं-कहीं इसमें पानी है।
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प्रमुख आकर्षण :
दुधवा में बिली अर्जन सिंह का टाइगर हैवेनपर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इसके अलावा झादी ताल के आसपास का क्षेत्र भी पर्यटकों को लुभाता है। यहां पर बारहसिंहा बहुतायत में मिलते हैं। साथ ही विभिन्न प्रजातियों के दुर्लभ पक्षी भी यहां देखने को मिल जाते हैं। अमहा ताल के आसपास भी गैंडे टहलते मिल जाते हैं। इसके अलावा ककरहा व नगरा ताल के आसपास का क्षेत्र भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
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ठहरने की व्यवस्था :
दुधवा में सैलानियों के ठहरने के लिए 14 थारू हट बने हैं। इसके अलावा दो वीआइपी हट भी हैं। इसमें ठहरने के लिए लखनऊ के वन निदेशालय से भी बुकिंग कराई जा सकती है।
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कैसे पहुंचें
– दिल्ली से वाया बरेली, शाहजहांपुर, मैलानी, बिजुआ व पलिया होते हुए दुधवा। दूरी 450 किलोमीटर। शाहजहांपुर से आगे सिर्फ सड़क मार्ग से।
-दिल्ली से वाया बरेली, पीलीभीत, पूरनपुर व पलिया होते दुधवा। 425 किलोमीटर। सड़क व रेल मार्ग दोनों उपलब्ध।
-लखनऊ से वाया सीतापुर, लखीमपुर व पलिया होते दुधवा। 250 किलोमीटर। सड़क व रेल मार्ग दोनों उपलब्ध।
– शाहजहांपुर से दुधवा 110 किलोमीटर। (सड़क मार्ग से)
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दुधवा तक पहुंचने को है ‘बादशाह
लखनऊ के रहमानखेड़ा इलाके से पकड़कर दुधवा टाइगर रिजर्व के सोनारीपुर रेंज में छोड़े गए बाघ पर सैटेलाइट के जरिए लगातार निगरानी रखी जा रही है। दुधवा के उप निदेशक गणेश भट्ट ने बताया कि गले में डाले गए रेडियो कॉलर से पता चला है कि वह सोनारीपुर रेंज से निकलकर 15 किलोमीटर की दूरी तय करके दुधवा की तरफ बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि बाघ के बारे में सैटेलाइट के जरिए प्राप्त हो रही सूचनाएं देहरादून सेंटर से उन लोगों तक पहुंचायी जा रही हैं।

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